Uttarakhand News : वित्त मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने दी मरीजों को बड़ी राहत.., चिकित्सा सेवा शुल्क हुआ कम, देखें….

उत्तराखंड के लोगों के लिए स्वास्थ्य से जुड़ी एक अच्छी खबर सामने आ रही हैं। बता दे कि अब सरकारी चिकित्सालयों में मरीजों को ओपीडी और आईपीडी पंजीकरण के लिए कम शुल्क देना होगा। इसके अलावा एंबुलेंस और बैड चार्जेज भी कम हो गया है। इस संबंध में प्रदेश के वित्त मंत्री डा. प्रेमचंद अग्रवाल ने प्रस्ताव पर अपना अनुमोदन दिया है। वहीं अब जल्द ही यह राज्य के सरकारी चिकित्सालयों में लागू हो जाएगा। जिससे जनसामान्य को ज्यादा शुल्क देने से राहत मिलेगी।

वहीं वित्त मंत्री डा. प्रेमचंद अग्रवाल ने बताया कि राज्य की विषय भौगोलिक परिस्थितियों एवं कमजोर आर्थिक स्थितियों के कारण पर्वतीय जिलों के आम जनमानस केवल राजकीय चिकित्सालयों पर ही निर्भर हैं। जिसे देखते हुए राज्य सरकार ने चिकित्सा सेवा शुल्क की दरों को कम किए जाने का विचार किया है।

साथ ही वित्त मंत्री ने बताया कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की ओपीडी में अभी तक 13 रुपये लिया जा रहा है, जोकि अब 10 रुपये किया गया हैं। वहीं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में 15 रुपये से 10 रुपये, जिला व उप जिला चिकित्सालय में 28 रुपये से 20 रूपये किया गया है।

इसके अलावा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की आईपीडी में अभी तक 17 रुपये पंजीकरण शुल्क था जिसे अब 15 रुपये किया गया है। जबकि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में 57 रुपये से 25 रुपये और जिला व उप जिला चिकित्सालय में 134 रुपये से 50 रुपये किया गया है।

वहीं वित्त मंत्री अग्रवाल ने बताया कि विभागीय एंबुलेंस द्वारा रोगी वाहन शुल्क को पांच किलोमीटर तक 315 रूपये न्यूनतम रुपये एवं अतिरिक्त दूरी के लिए 63 रु. प्रति किलोमीटर लिया जा रहा है, लेकिन इसे अब 05 किलोमीटर तक 200 रुपये न्यूनतम और अतिरिक्त दूरी के लिए 20 रु. प्रति किलोमीटर किया गया है।

साथ ही उन्होंने बताया कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में रेफर करने पर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र द्वारा मरीजों से पंजीकरण शुल्क नहीं लिया जाएगा। इसी तरह उप जिला चिकित्सालय से जिला चिकित्सालय में रेफर होने पर भी जिला चिकित्सालय पंजीकरण शुल्क नहीं लेगा।

यहीं नही बल्कि अब राज्य में यूजर्स चार्जेज में प्रतिवर्ष 10 प्रतिशत की वृद्धि नहीं जाएगी। जबकि आम जनमानस एवं रोगियों के हित में यूजर्स चार्जेज में तीन वर्ष के बाद शासन स्तर पर समीक्षा की जाएगी।

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